लेखकीय सफर ऑल इंडिया रेडियो के युवा-वाणी प्रोग्राम में अपनी रचना पढने से हुआ। पहली रचना मनोरमा अप्रैल प्रथम, 1994 और पहली कहानी मनोरमा के ही जुलाई, प्रथम, 1994 में छपी।
इसके पश्चात सरिता, गृहलक्ष्मी, मेरी सहेली, वनिता, गृहदेवी आदि पत्रिकाओं में 2004-05 तक कई कहानियां तथा धारावाहिक रचनाएं छपती रहीं। फिर कई वर्षों तक कतिपय निजी कारणों से लेखन में व्यवधान रहा।
फिर 2017 में लघुकथा के परिंदे के साथ जुड़ने के बाद लघुकथा लेखन में रुचि जागृत हुई। अभी लघुकथा के परिंदे, इत्यादि ग्रुप में लगातार लिख रही हूँ। पहली लघुकथा 'नई सदी की धमक' में छपी। अब फेसबुक पर लघुकथा तथा कविताओं के कई ग्रुप जैसे मातृभारती, प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर इत्यादि ग्रुप से जुड़ाव है। जिसमें पाठकों की संख्या साढ़े तीन लाख से ऊपर जा चुकी है। लोगों को रचनाएँ पसंद आने से पाठकों और लेखकों के समूह में पहचान मिली और फिर कई संपादकों ने अपनी ई-बुक और कहानी/कविता संग्रहों में रचनाएँ संग्रहित कीं।
मेरी लघुकथा अकल्पित पर बनी शॉर्ट फिल्म, फिल्म फेस्टिवल्स में बेस्ट स्टोरी का खिताब दो बार जीत चुकी है।
दूरदर्शन बिहार से तीन बार लाइव इंटरव्यू, खुला आकाश प्रोग्राम में आ चुका हैं। इसके अतिरिक्त टॉक शो आदि में भी उपस्थित रही हूँ।